सूर्य के २१ नाम
Surya 21 Names
भगवान् सूर्य आरोग्य के देवता हैं। उनकी नित्य आराधना से बुद्धि तेजस्वी होती है और अनेक रोगों से हमारी रक्षा होती है। ये प्रत्यक्ष देवता हैं, जिनका आधिभौतिक रूप हम अपनी आँखों से देखते हैं। अतः इनकी आराधना का हमारे जीवन में विशेष महत्त्व है।
आज मैं कुछ ऐसे श्लोक की चर्चा करूँगा, जिनमें भगवान् सूर्य के २१ नाम का उल्लेख है। जिसके एक बार पढ़ने पर, भगवान् सूर्य के एक हज़ार नाम बोलने का पुण्य प्राप्त होता है।
वे श्लोक हैं─
ॐ विकर्तनो विवस्वांश्च मार्तण्डो भास्करो रविः।
लोकप्रकाशकः श्रीमान् लोकचक्षुर्महेश्वरः।।
लाेकसाक्षी त्रिलोकेशः कर्ता हर्ता तमिस्रहा।
तपनस्तापनश्चैव शुचिः सप्ताश्ववाहनः।।
गभस्तिहस्तो ब्रह्मा च सर्वदेवनमस्कृतः।
अनुष्टुप छन्द पर आधारित ये ढाई श्लोक हैं, जिनका एक बार पठन सहस्र सूर्य नाम-जप के समान फलदायी है। ये ढाई श्लोक किसी स्तोत्र से कम नहीं है। इन श्लोकों को भलिभाँति कण्ठस्थ करके और दोनों सन्धायों में इसके पाठ का नियम बना लेना चाहिये। आइये जानते हैं, इसका इतना महत्त्व क्यों है?
भविष्य पुराण में उल्लेख है, भगवान् श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब रानी जाम्बवती के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। साम्ब बलवान होने के साथ-साथ अत्यन्त रूपवान भी थे। अपने रूप का उन्हें बड़ा अभिमान था। अहंकार किसी भी चीज़ का हो जाये, देर-सबेर उसके कारण हमारा अनिष्ट ही होता है और यही साम्ब के जीवन में भी हुआ।
एक बार वसन्त ऋतु में दुर्वासा ऋषि तीनों लोक में विचरण करते हुए द्वारिकापुरी में आ पहुँचे। उनकी क्षीण काया देखकर साम्ब ने उनका उपहास किया। दुर्वासा ऋषि तो क्रोधी स्वभाव के थे ही, उस पर भी उनका कोई उपहास (हँसी उड़ाये) करे, यह उन्हें कैसे सहन होता। उन्होंने कमण्डल से अपनी अँजुलि में जल लिया और संकल्प करके श्राप दे दिया कि तुम शीघ्र ही कोढ़ी हो जाओ।
श्राप मिलते ही साम्ब कुष्ठरोग से पीड़ित हो गये। ऐसी विकट परिस्थिति अपने पिता भगवान् श्री कृष्ण के सिवाय उन्हें कोई नहीं सूझा। वे भगवान् श्री कृष्ण के पास पहुँचे। श्री कृष्ण साम्ब को धैर्य बँधाते हुए बोले ─ “धीरज रखो और सूर्य नारायण की आराधना करो। वे प्रत्यक्ष देवता हैं, उनकी कृपा से तुम इस रोग से मुक्ति पाकर सुख भोग सकोगे।”
साम्ब चन्द्रभागा नदी के तट पर मित्रवन नामक सूर्यक्षेत्र में सूर्य नारायण की आराधना करने लगे। वे उपवास रखकर प्रतिदिन भगवान् सूर्य के एक हज़ार नाम का पाठ करते थे। भगवान सूर्य ने प्रसन्न होकर उन्हें स्वप्न में उपरोक्त इक्कीस नाम बताये और कहा─
“प्रिय साम्ब! तुम्हें सहस्रनाम से हमारी स्तुति करने की आवश्यकता नहीं है। हम तुम्हें अत्यन्त पवित्र और गुह्य इक्कीस नाम बताते हैं, जिनका पाठ करने से सहस्रनाम पाठ करने का फल मिलता है। जो दोनों सन्ध्याओं (सूर्योदय-सूर्यास्त) में इसका पाठ करता है, वह समस्त पापों से छूटकर धन, आरोग्य, सन्तान आदि वाञ्छित पदार्थ प्राप्त करता है और निश्चित ही समस्त रोगों से मुक्त हो जाता है।”
कथा तो आगे और है, परन्तु यहाँ तक बताने का उद्देश्य है कि आप इसका माहात्म्य समझ सकें। इन श्लोकों को आप दोनों सन्ध्याओं में नित्यपाठ करने का नियम बना लें; क्योंकि इसे स्वयं भगवान् सूर्य ने कहा है।
ध्यान दें- अनेक वेबसाइटों पर ये नाम आपको पढ़ने मिलेंगे, जहाँ ९ वाँ नाम गृहेश्वर लिखा हुआ है, जो कि ग़लत है; क्योंकि ९ वाँ नाम महेश्वर है। ये श्लोक गीताप्रेस गोरखपुर के कल्याण अंक से लिया गया।
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सुगम ज्ञान संगम के अध्यात्म + स्तोत्र संग्रह स्तम्भ (Category) में प्रकाशित यह लेख (Post) आपके लिये लाभकारी सिद्ध होगा।
इक्कीस नामों के क्रम निम्नलिखित हैं
१) विकर्तनो
२) विवस्वान
३) मार्तण्ड
४) भास्कर
५) रवि
६) लोक प्रकाशक
७) श्रीमान
८) लोकचक्षु
९) महेश्वर
१०) लोक साक्षी
११) त्रिलोकेश
१२) कर्ता
१३) हर्ता
१४) तमिस्रहा
१५) तपन
१६) तापन
१७) शुचि
१८) सप्ताश्ववाहन
१९) गभस्तिहस्त
२०) ब्रह्मा
२१) सर्वदेवनमस्कृतः
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