हनुमान चालीसा अर्थ

हनुमान चालीसा अर्थ

हनुमान चालीसा का पाठ प्रायः हम सभी करते है। लेकिन इसकी हर चौपाई का अर्थ क्या है? हमें पता नहीं होता।
तो आइये,
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सुगम ज्ञान संगम के अध्यात्म + चालीसा संग्रह स्तम्भ में इस पोस्ट में इसका हिन्दी में अर्थ जानते हैं।

❀ श्री हनुमान चालीसा ❀
(❑➧दोहा-चौपाई ❑अर्थ➠ सहित)

दोहा

❑➧श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।
❑अर्थ➠ श्री गुरु महाराज के चरणकमलों की धूलि से अपने मनरूपी दर्पण को पवित्र करके श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो चारों फल (धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष) प्रदान करनेवाला है।

❑➧बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
❑अर्थ➠ हे पवनपुत्र! मैं आपका सुमिरन करता हूँ। आप तो जानते ही हैं कि मेरी काया और बुद्धि निर्बल है। मुझे शारीरिक बल, सद्बुद्धि एवं ज्ञान दीजिए। मेरे दुःखों और दोषों का नाश कीजिए।

चौपाई

❑➧जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।।१।।
❑अर्थ➠ हे हनुमान जी! आपकी जय हो। आप ज्ञान और गुण के सागर हैं। तीनों लोक (स्वर्गलोक, भूलोक और पाताललोक) में यह बात उजागर है कि आप कपीश्वर (वानरों में सर्वश्रेष्ठ) हैं। आपकी जय हो!

❑➧राम दूत अतुलित बल धामा।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा।।२।।
❑अर्थ➠ माता अंजनी के पुत्र, पवनपुत्र नाम से विख्यात हे रामदूत! आप अतुलनीय बल के भण्डार हो।

❑➧महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।३।।
❑अर्थ➠ विशेष पराक्रमवाले हे महावीर बजरंगबली! आप दुर्बुद्धि का निवारण करके सद्बुद्धि प्रदान करते हो अर्थात् अच्छे विचारवालों के सहायक-साथी हो।

❑➧कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा।।४।।
❑अर्थ➠ आपका शरीर सुनहरे रंग का और वेशभूषा बहुत ही सुन्दर है। आपके बाल घुँघराले हैं और कानों में कुण्डल हैं।

❑➧हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
काँधे मूँज जनेऊ साजै।।५।।
❑अर्थ➠ आपने हाथ में वज्र और ध्वजा धारण किया है। आपके काँधे पर मूँज से बना यज्ञोपवीत (जनेऊ) शोभायमान हो रहा है।

❑➧संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बंदन।।६।।
❑अर्थ➠ शंकर भगवान के अवतार, हे केसरी नन्दन! आप अपने तेज और पराक्रम से सारे संसार में परम वन्दनीय हैं।

❑➧बिद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।७।।
❑अर्थ➠ आप विद्यावान और गुण के निधान हैं। अत्यन्त कार्य कुशल होकर श्री राम काज करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं।

❑➧प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।८।।
❑अर्थ➠ प्रभु श्रीराम का चरित्रगान सुनने में आप आनन्द रस लेते हैं। श्रीराम, सीता और लखन आपके हृदय में बसते हैं।

❑➧सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा।।९।।
❑अर्थ➠ आपने अपना बहुत छोटा रूप धारण करके सीताजी को दिखलाया और भयंकर रूप धारण करके लंका को जलाया।

❑➧भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचंद्र के काज सँवारे।।१०।।
❑अर्थ➠ आपने विकराल रूप धारण करके राक्षसों को मारा और श्री रामचन्द्र जी के कार्य को सफल किया।

❑➧लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।११।।
❑अर्थ➠ आपने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मणजी को जीवित किया, जिस कारण श्री रघुवीर ने हर्षित होकर आपको हृदय से लगा लिया।

❑➧रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।१२।।
❑अर्थ➠ रघुपति श्रीराम ने आपकी बहुत प्रशंसा की और कहा कि तुम मेरे लिये मेरे भाई भरत के समान प्रिय हो।

❑➧सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।१३।।
❑अर्थ➠ तुम्हारा यश हज़ार मुख से सराहनीय है, यह कहकर सियापति राम ने आपको गले से लगा लिया।

❑➧सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।।१४।।
❑अर्थ➠ सनकादिक ऋषि (सनक, सनातन, सनन्दन, सनत्कुमार चारों ऋषि), ब्रह्मा आदि देवता, मुनिगण, नारदजी, माता सरस्वती सहित शेषनाग भी आपका गुणगान करते हैं।

❑➧जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते।।१५।।
❑अर्थ➠ यमराज, कुबेर, सब दिशाओं के रक्षक, कवि, विद्वान, पण्डित या कोई भी आपके यश का पूरी तरह वर्णन नहीं कर सकते।

❑➧तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राजपद दीन्हा।।१६।।
❑अर्थ➠ आपने सुग्रीव को श्रीराम से मिलवाकर, सुग्रीव पर उपकार किया और उन्हें राजपद दिलवाया।

❑➧तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना।।१७।।
❑अर्थ➠ विभीषणजी ने आपके उपदेश का पालन किया, जिससे वे लंका के राजा बने, यह सारा संसार जानता है।

❑➧जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।१८।।
❑अर्थ➠ दो हज़ार योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को आपने एक मीठा फल समझकर निगल लिया।

❑➧प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं।।१९।।
❑अर्थ➠ प्रभु श्री रामचन्द्र जी की अँगूठी मुँह में रखकर आप समुद्र को लाँघ गये, इसमें कोई आश्चर्य नहीं है।

❑➧दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।२०।।
❑अर्थ➠ संसार मे जितने भी कठिन-से-कठिन काम हैं, वे आपकी कृपा से सहज ही हो जाते हैं।

❑➧राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।२१।।
❑अर्थ➠ भगवान श्रीराम द्वार के आप
रखवाले हैं, जिस द्वार पर आपकी आज्ञा बिना किसी को प्रवेश नहीं मिलता अर्थात् आपकी प्रसन्नता के बिना रामकृपा दुर्लभ है।

❑➧सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रच्छक काहू को डर ना।।२२।।
❑अर्थ➠ जो भी आपकी शरण में आते हैं, उन सभी को सुख प्राप्त होता है और जब आप रक्षक हैं तो फिर किस बात का डर है!

❑➧आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक तें काँपै।।२३।।
❑अर्थ➠ आपके सिवाय आपके वेग को कोई नहीं रोक सकता; आपकी गर्जना से ही तीनों लोक काँप जाते हैं।

❑➧भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।२४।।
❑अर्थ➠ जब महावीर हनुमान का नाम सुनाया जाता है, तब भूत-पिशाच निकट भी नहीं आते।

❑➧नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा।।२५।।
❑अर्थ➠ वीर हनुमान जी! आपका निरंतर जप करने से सब रोगों का नाश हो जाता है और समस्त पीड़ाएँ मिट जाती हैं।

❑➧संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।२६।।
❑अर्थ➠ हे हनुमान जी! विचार करने में, कर्म करने में और बोलने में जिनका ध्यान आपमें रहता है, उनको सारे आप संकटों से छुड़ा लेते हैं।

❑➧सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।।२७।।
❑अर्थ➠ तपस्वी राजा श्री रामचन्द्र जी सबसे श्रेष्ठ हैं। उनके समस्त कार्यों को आपने सहज ही पूर्ण कर दिया।

❑➧और मनोरथ जो कोइ लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै।।२८।।
❑अर्थ➠ जिस पर आपकी कृपा हो, वह कोई भी अभिलाषा करे; उसे ऐसा फल मिलता है जिसकी जीवन में कोई सीमा नहीं होती।

❑➧चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।२९।।
❑अर्थ➠ चारों युग (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग तथा कलियुग) में आपका यश फैला हुआ है। जगत् में आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है।

❑➧साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।।३०।।
❑अर्थ➠ श्रीराम के दुलारे! आप साधु-सन्तों (सज्जनों) की रक्षा करते हैं और असुरों (दुष्टों) का नाश करते हैं।

❑➧अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन्ह जानकी माता।।३१।।
❑अर्थ➠ आपको माता जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है, जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियाँ और नौ निधियाँ दे सकते हैं।

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अष्ट सिद्धि नौ निधि

❑➧राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।३२।।
❑अर्थ➠ आपके पास राम नाम की औषधि है। आप सदैव ही सेवक के रूप में रघुनाथ की शरण में रहते हो।

❑➧तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै।।३३।।
❑अर्थ➠ आपका भजन करने से भगवान श्रीराम की प्राप्ति होती है और जन्म-जन्मान्तर के दुःख दूर हो जाते हैं।

❑➧अंत काल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई।।३४।।
❑अर्थ➠ आपके भक्त जहाँ भी जन्म लेते हैं हरिभक्त ही कहलाते हैं और अन्त समय में श्री रघुनाथ के धाम को प्राप्त होते हैं।

❑➧और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।३५।।
❑अर्थ➠ हे हनुमानजी! आपकी सेवा-भक्ति करने सभी सुख प्राप्त होते है इसलिये अन्य किसी देवता में मन लगाने की आवश्यकता नहीं।

❑➧संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।३६।।
❑अर्थ➠ हे महावीर हनुमान! जो आपका सुमिरन करता रहता है, उसके सब संकट कट जाते हैं और सारी पीड़ाएँ मिट जाती हैं।

❑➧जै जै जै हनुमान गुसाईं।
कृपा करहु गुरु देव कि नाईं।।३७।।
❑अर्थ➠ हे स्वामी हनुमान जी! आपकी जय हो, जय हो, जय हो! आप मुझ पर कृपालु श्री गुरुदेव के समान कृपा कीजिए।

❑➧जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई।।३८।।
❑अर्थ➠ जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा, वह सब बन्धनों से छूटकर परमानन्द को प्राप्त होगा।

❑➧जो यह पढ़ै हनुमान चलीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।३९।।
❑अर्थ➠ भगवान् शंकर इसके साक्षी हैं कि जो इसे पढ़ेगा, उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।

❑➧तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा।।४०।।
❑अर्थ➠ तुलसीदास सदा ही श्री राम का दास रहा है। इसलिये हे नाथ! आप मेरे हृदय में निवास कीजिए।

दोहा

❑➧पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।
❑अर्थ➠ हे संकट मोचन पवन कुमार! आपका स्वरूप मंगलकारी है। देवताओं के राजा, आप श्रीराम, सीताजी और लक्ष्मणसहित मेरे हृदय में निवास कीजिए।

3 Comments

  1. tofdupefe January 25, 2023
  2. tofdupefe February 3, 2023
  3. Boasexy March 13, 2023

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