हनुमान चालीसा कैसे पढ़ें kaise padhe hanuman chalisa

 

हनुमान चालीसा कैसे पढ़ें
Kaise padhe hanuman chalisa

प्रियजनो, हनुमान चालीसा हम सबने अपने जीवन में कई पढ़ा होगा। हनुमान भक्त तो इसका नित्यपाठ करते हैं। पढ़ते समय हमसे अनेक ग़लतियाँ होती हैं, जिस पर हम ध्यान नहीं देते। हमें लगता है शायद किताब में ग़लत छप गया होगा; इसलिये हम व्यावहारिक सही शब्द का प्रयोग कर देते हैं। यद्यपि गीताप्रेस गोरखपुर के प्रकाशन को छोड़कर हर प्रकाशन में कुछ-न-कुछ त्रुटियाँ मिल ही जाती हैं।

ख़ैर, आज के इस लेख में हनुमान चालीसा पढ़ते समय हमसे उच्चारण में कहाँ-कहाँ ग़लतियाँ होती हैं, यह जानेंगे? यदि आप हनुमान भक्त हैं और हनुमान चालीसा नित्य पढ़ते हैं तो इस पोस्ट को अन्त तक अवश्य पढ़ें।

श्री हनुमान चालीसा से हिन्दू ही नहीं, अपितु अन्य धर्म के लोग भी भलिभाँति परिचित हैं। इस रचना को न जाने कितने गायक गा चुके हैं और भविष्य में न जाने कितने लोग गायेंगे।

सन्त तुलसीदास ने चौपाई मात्रिक छन्द के आधार पर अवधी भाषा में इसकी रचना की है। चौपाई में कुल १६ मात्राएँ होती है। दो समतुकान्त होने पर एक चौपाई पूरी मानी जाती है अर्थात् १६-१६ मात्राओं की समतुकान्त दो पंक्तियों से एक चौपाई बनती है।

समतुकान्त का मतलब है अन्तिम शब्द का उच्चारण समरूप हों; जैसे उजागर-सागर, धामा-नामा, बजरंगी-संगी, सुबेसा-केसा, बिराजे-साजे इत्यादि।

क्योंकि चौपाई मात्रिक छन्द है अतः पढ़ते समय वर्ण की मात्राओं पर ध्यान देना अति आवश्यक है कि हम दीर्घ उच्चारण कर रहे हैं या लघु। यदि हमने दीर्घ की जगह लघु और लघु की जगह दीर्घ उच्चारण कर दिया तो चौपाई को पढ़ने का प्रवाह रुक जायेगा। हम पढ़ते समय कहीं-न-कहीं रुक जायेंगे। रामचरितमानस पढ़ते समय हम सबका यह अनुभव रहा है।

कभी-कभी हम अपनी तरफ़ से सही शब्द का प्रयोग करते हैं। परन्तु सही शब्द बोलने पर छन्द की मात्रा बढ़ जाती या कम हो जाती है, जो कि दोष माना जाता है। इसलिये जो लिखा है उसे उसी प्रकार पढ़ना हनुमान चालीसा का शुद्धवाचन माना जायेगा।

एक बात हमें ध्यान रखना है कि हनुमान चालीसा में और रामचरितमानस के दोहे और चौपाई में ण की जगह न लिखा होता है; जैसे─
चरण को चरन
हरण को हरन
शरण को सरन
श की जगह स लिखा होता है;जैसे─
कलेश को कलेस
कपीश को कपीस
शंकर को संकर
इसी प्रकार जहाँ व से शब्द का आरम्भ होता है या वैसे शब्द की किसी शब्द से सन्धि हो, वहाँ ब अक्षर होता है; जैसे─
विक्रम को बिक्रम
विद्या को बिद्या
विकार को बिकार
महावीर को महाबीर

देखा जाये तो उपरोक्त सारे शब्द मूल शब्द के अपभ्रंश ही हैं, जो शुद्ध हिन्दी लेखन-उच्चारण में दोषपूर्ण माने जाते हैं। लेकिन इसी अपभ्रंश का उच्चारण ही हनुमान चालीसा का शुद्ध पाठ माना जाता है; क्योंकि यह ग्रामीण भाषा में लिखा गया है।

आशा करता हूँ आप स्वयं हनुमान चालीसा पढ़ते समय इन सारी बातों को ध्यान में रखेंगे।

अब मैं आपका ध्यान हनुमान चालीसा के कुछ ऐसे शब्दों पर केन्द्रित करूँगा, जहाँ अच्छे-अच्छे गायकों ने ये ग़लतियाँ की हैं। जानकारी के अभाव में हम भी उन ग़लतियों को दोहराने लगते हैं।

पहले दोहे में─
चरन को चरण
बिमल को विमल
दायकु को दायक
उच्चारण करना दोषपूर्ण है।
शुद्धरूप─
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।
दूसरे दोहे में─
बुधि को बुद्धि
कलेस को कलेश या क्लेश
उच्चारण करना दोषपूर्ण है।
शुद्धरूप─
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
चौपाई में भी हमसे यही सारी त्रुटियाँ होती हैं। परन्तु चौपाई क्र. ३७ में गुसाईं को गोसाईं उच्चारण किया जाता है। यद्यपि गीताप्रेस से प्रकाशित हनुमान चालीसा में भी गोसाईं छपा होता है। लेकिन उच्चारण गुसाईं होना चाहिये। क्योंकि गोसाईं बोलने इस पंक्ति में १६ के बदले १७ मात्राएँ हो जाती हैं।
शुद्धरूप─
जै जै जै हनुमान गुसाईं।
कृपा करहु गुरु देव कि नाईं।।३७।।
इसी प्रकार चौपाई क्र. ३९ में चलीसा को कुछ लोगा चालीसा पढ़ते हैं, उन्हें लगता है छपाई में ग़लती हो गयी होगी, परन्तु यह छपाई में ग़लती नहीं है, अपितु छन्द की मर्यादा के लिये चलीसा लिखा गया है; वैसे भी जब हम प्रवाह में चालीसा बोलने जाते हैं तो वह चालीसा न हो चालिसा उच्चारण होता है आप बोलकर देखें; अतः चलीसा बोलना ही श्रेयकर है। ध्यान रहे यह केवल इस चौपाई की बात है। बात करते समय हनुमान चालीसा बोलना ही शुद्ध उच्चारण माना जायेगा।
शुद्धरूप─
जो यह पढ़ै हनुमान चलीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।३९।।

आशा करता हूँ यह पोस्ट पढ़ने बाद आप हनुमाना चालीसा पढ़ते समय ग़लतियाँ नहीं करेंगे।

One Response

  1. gypesee February 8, 2023

Leave a Reply