हनुमान चालीसा मूल पाठ

हनुमान चालीसा मूल पाठ 

हनुमान चालीसा की प्रति सर्वत्र उपलब्ध है। कई प्रकाशनों द्वारा हनुमान चालीसा प्रकाशित है, परन्तु उनमें कुछ न कुछ त्रुटियाँ अवश्य होती है। देखा जाये तो हनुमान भक्तों को हनुमान चालीसा याद ही रहता है, परन्तु जाने अनजाने उनके दिलो-दिमाग़ जो शब्दों का स्वरूप बैठ गया, वह कहीं कहीं दोषपूर्ण है।

सुगम ज्ञान संगम के अध्यात्म + चालीसा संग्रह स्तम्भ में श्री हनुमान चालीसा के मूलपाठ देने का उद्देश्य है, दर्शकों को सही और सहज हनुमान चालीसा उपलब्ध हो, ताकि वे सहजता से इसका पाठ कर सकें। चालीसा के अन्त में JPG image भी उपलब्ध है, जिसे डाऊनलोड करके आप कभी भी हनुमान चालीसा का पाठ कर सकते हैं।

❀ श्री हनुमान चालीसा ❀
(मूलपाठ)

दोहा

❑➧श्रीगुरु चरन सरोज रज,
निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु,
जो दायकु फल चारि।।

❑➧बुद्धिहीन तनु जानिके,
सुमिरौं पवन कुमार।
बल बुधि बिद्या देहु मोहि,
हरहु कलेस बिकार।।

चौपाई

❑➧जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।।१।।

❑➧राम दूत अतुलित बल धामा।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा।।२।।

❑➧महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।३।।

❑➧कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा।।४।।

❑➧हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
काँधे मूँज जनेऊ साजै।।५।।

❑➧संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बंदन।।६।।

❑➧बिद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।७।।

❑➧प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।८।।

❑➧सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा।।९।।

❑➧भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचंद्र के काज सँवारे।।१०।।

❑➧लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।११।।

❑➧रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।१२।।

❑➧सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।१३।।

❑➧सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।।१४।।

❑➧जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते।।१५।।

❑➧तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राजपद दीन्हा।।१६।।

❑➧तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना।।१७।।

❑➧जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।१८।।

❑➧प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं।।१९।।

❑➧दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।२०।।

❑➧राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।२१।।

❑➧सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रच्छक काहू को डर ना।।२२।।

❑➧आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक तें काँपै।।२३।।

❑➧भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।२४।।

❑➧नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा।।२५।।

❑➧संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।२६।।

❑➧सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।।२७।।

❑➧और मनोरथ जो कोइ लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै।।२८।।

❑➧चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।२९।।

❑➧साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।।३०।।

❑➧अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन्ह जानकी माता।।३१।।

❑➧राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।३२।।

❑➧तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै।।३३।।

❑➧अंत काल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई।।३४।।

❑➧और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।३५।।

❑➧संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।३६।।

❑➧जै जै जै हनुमान गुसाईं।
कृपा करहु गुरु देव कि नाईं।।३७।।

❑➧जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई।।३८।।

❑➧जो यह पढ़ै हनुमान चलीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।३९।।

❑➧तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा।।४०।।

दोहा

❑➧पवन तनय संकट हरन,

मंगल मूरति रूप।

राम लखन सीता सहित,

हृदय बसहु सुर भूप।।

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