कनकधारा स्तोत्र मूल पाठ

कनकधारा स्तोत्र मूल पाठ

कनकधारा स्तोत्र माता लक्ष्मी की कृपा पाने का सबसे सुगम साधन है। इस पोस्ट में हम इसे भलिभाँति बोलना सीखेंगे; क्योंकि जब हम इसे बोल सकेंगे तभी तो इसका पाठ कर सकेंगे और तभी माँ लक्ष्मी की कृपा हम पर होगी। परन्तु इसके पहले इसके बारे में कुछ जानना आवश्यक है। आइये, उसे जान लेते हैं।

कनकधारा स्तोत्र की रचना श्रीमद् शंकराचार्य ने की थी। कहा जाता है, इसके प्रभाव से उन्होंने स्वर्ण-मुद्राओं की वर्षा करवाई थी। यह सम्भव भी है; क्योंकि ३२ वर्ष की आयु में (सन् ७८८ से सन् ८२० तक) ब्रह्मसूत्र और गीता जैसे अनेक उपनिषदों पर भाष्य लिखना, अनेक स्तोत्र की रचना करना, विवेक चूड़ामणि जैसे ग्रन्थ की रचना, कई शक्तिपीठ की स्थापना, कोई साधारण आत्मा नहीं कर सकती।

ख़ैर, आदि शंकराचार्य ने कनकधारा स्तोत्र के सन्दर्भ में कोई विधि-विधान का उल्लेख नहीं किया है। इसका एक बार पाठ करना भी पर्याप्त है। समय और सुविधा हो तो नियत समय, नियत संख्या में अपने सामर्थ्य अनुसार जप-अनुष्ठान भी किया जा सकता है।

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सुगम ज्ञान संगम के अध्यात्म + स्तोत्र संग्रह स्तम्भ में मूल श्लोक गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित स्तोत्र रत्नावली किताब से लिया गया है। जिसमें कुल १८ श्लोक हैं। यू ट्यूब चैनल पर कनकधारा स्तोत्र वीडियो के रूप में और कई वेबसाइटों पर लेख के रूप में उपलब्ध हैं। जिनमें १२ श्लोक तक समानता मिलती है, उसके बाद कहीं १८ श्लोक हैं तो कहीं २१ श्लोक है। यह इस कारण है कि निम्नलिखित ३ श्लोक

नमोऽस्तु हेमाम्बुजपीठिकायै
नमोऽस्तु भूमण्डलनायिकायै।
नमोऽस्तु देवादिदयापरायै
नमोऽस्तु शार्ङ्गायुधवल्लभायै।।१३।।

नमोऽस्तु देव्यै भृगुनन्दनायै
नमोऽस्तु विष्णोरुरसि स्थितायै।
नमोऽस्तु लक्ष्म्यै कमलालयायै
नमोऽस्तु दामोदरवल्लभायै।।१४।।

नमोऽस्तु कान्त्यै कमलेक्षणायै
नमोऽस्तु भूत्यै भुवनप्रसूत्यै।
नमोऽस्तु देवादिभिरर्चितायै
नमोऽस्तु नन्दात्मजवल्लभायै।।१५।।

क्षेपक रूप से इस स्तोत्र में सम्मिलित कर दिये गये हैं, जो मूल स्तोत्र में नहीं हैं। इसलिये इस पोस्ट में मूल स्तोत्र में ये तीनों मंत्र आपको नहीं मिलेंगे; क्योंकि हमारा उद्देश्य है किसी भी विषय-वस्तु का संशोधन करके सही और प्रामाणिक जानकारी समाज को प्रदान करना है।

ध्यान दें-
दर्शकों को पढ़ने हेतु नीले रंग जो मंत्र दर्शाये गये हैं, वे शब्दों के सन्धि विच्छेदन नहीं हैं; क्योंकि शब्द सन्धि-विच्छेदन से मूल उच्चारण में परिवर्तन होने की सम्भावना बनी रहती है।
अतः दर्शकों को पढ़ने और उच्चारण करने में सुगमता हो, उसके अनुसार श्लोक के शब्द केवल छोटे-छोटे रूप में दर्शाये गये हैं।

❀ श्री कनकधारास्तोत्रम् ❀
(❑➧मूलश्लोक ❍लघुशब्द)

❑➧अङ्गं हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम्।
अङ्गीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला माङ्गल्यदास्तु मम मङ्गलदेवताया।।१।।
❍ अङ्गं हरेः पुलक भूषण माश्रयन्ती
भृङ्गाङ्ग नेव मुकुला भरणं तमालम्।
अङ्गी कृताखिल विभूतिर पाङ्गलीला
माङ्गल्य दास्तु मम मङ्गल देवताया।।१।।

❑➧मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।
माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या सा मे श्रियं दिशतु सागर सम्भवायाः।।२।।
❍ मुग्धा मुहुर्वि दधती वदने मुरारेः
प्रेमत्रपा प्रणि हितानि गता गतानि।
माला दृशोर् मधुकरीव महोत्पले या
सा मे श्रियं दिशतु सागर सम्भवायाः।।२।।

❑➧विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षमानन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्धमिन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः।।३।।
❍ विश्वा मरेन्द्र पद विभ्रम दान दक्ष
मानन्द हेतु रधिकं मुरवि द्विषोऽपि।
ईषन् निषीदतु मयि क्षण मीक्षणार्ध
मिन्दी वरोदर सहोदर मिन्दिरायाः।।३।।

❑➧आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दमानन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम्।
आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः।।४।।
❍ आमीलिता क्षम धिगम्य मुदा मुकुन्द
मानन्द कन्द मनिमेष मनङ्ग तन्त्रम्।
आकेकर स्थित कनी निक पक्ष्म नेत्रं
भूत्यै भवेन् मम भुजङ्ग शयाङ्ग नायाः।।४।।

❑➧बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या हारावलीव हरिनीलमयी विभाति।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः।।
❍ बाह्वन्तरे मधु जितः श्रित कौस्तुभे या
हारावलीव हरि नील मयी विभाति।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्ष माला
कल्याण माव हतु मे कमला लया याः।।५।।

❑➧कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव।
मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्तिर्भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः।।६।।
❍ कालाम्बुदा लिल लितोरसि कैटभारेर्
धाराधरे स्फुरति या तडि दङ्ग नेव।
मातुः समस्त जगतां महनीय मूर्तिर्
भद्राणि मे दिशतु भार्गव नन्दनायाः।।६।।

❑➧प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत्प्रभावान् माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन।
मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः।।७।।
❍ प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत् प्रभावान्
माङ्गल्य भाजि मधु माथिनि मन्मथेन।
मय्या पतेत्त दिह मन्थर मीक्षणार्धं
मन्दालसं च मकरालय कन्य कायाः।।७।।

❑➧दद्याद् दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारामस्मिन्नकिञ्चनविहङ्गशिशौ विषण्णे।
दुष्कर्मघर्ममपनीय चिराय दूरं
नारायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः।।८।।
❍ दद्याद् दयानु पवनो द्रविणाम्बु धारा
मस्मिन्न किञ्चन विहङ्ग शिशौ विषण्णे।
दुष्कर्म घर्म मपनीय चिराय दूरं
नारायण प्रणयिनी नयनाम्बु वाहः।।८।।

❑➧इष्टा विशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्रदृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते।
दृष्टिः प्रहृष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः।।९।।
❍ इष्टा विशिष्ट मतयोऽपि यया दयार्द्र
दृष्ट्या त्रिविष्ट पपदं सुलभं लभन्ते।
दृष्टिः प्रहृष्ट कमलोदर दीप्ति रिष्टां
पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्कर विष्ट रायाः।।९।।

❑➧गीर्देवतेति गरुडध्वजसुन्दरीति शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति।
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै।।१०।।
❍ गीर्दे वतेति गरुड ध्वज सुन्दरीति
शाकम्भ रीति शशि शेखर वल्लभेति।
सृष्टि स्थिति प्रलय केलिषु संस्थितायै
तस्यै नमस् त्रिभुवनैक गुरोस् तरुण्यै।।१०।।

❑➧श्रुत्यै नमोस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै रत्यै नमोऽस्तु रमणीयगुणार्णवायै।
शक्त्यै नमोस्तु शतपत्रनिकेतनायै पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै।।११।।
❍ श्रुत्यै नमोस्तु शुभ कर्म फल प्रसूत्यै
रत्यै नमोऽस्तु रमणीय गुणार्ण वायै।
शक्त्यै नमोऽस्तु शत पत्र निकेतनायै
पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तम वल्लभायै।।११।।

❑➧नमोऽस्तु नालीकनिभान‍नायै नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूत्यै।
नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै नमोऽस्तु
नारायणवल्लभायै।।१२।।
❍ नमोऽस्तु नालीक निभान नायै
नमोऽस्तु दुग्धो दधि जन्म भूत्यै।
नमोऽस्तु सोमामृत सोदरायै
नमोऽस्तु नारायण वल्लभायै।।१२।।

❑➧सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि।
त्वद्वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानि मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये।।१३।।
❍ सम्पत् कराणि सकलेन्द्रिय नन्दनानि
साम्राज्य दान विभवानि सरो रुहाक्षि।
त्व द्वन्द नानि दुरिता हरणोद्य तानि
मामेव मातर निशं कलयन्तु मान्ये।।१३।।

❑➧यत्कटाक्षसमुपासना विधि: सेवकस्य सकलार्थसम्पद:।
सन्तनोति वचनाङ्गमानसैस्त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे।।१४।।
❍ यत् कटाक्ष समुपासना विधि:
सेवकस्य सकलार्थ सम्पद:।
सन्त नोति वचनाङ्ग मानसै
स्त्वां मुरारि हृदयेश्वरीं भजे।।१४।।

❑➧सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे। 
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्।।१५।।
❍ सरसिज निलये सरोज हस्ते
धवल तमांशुक गन्ध माल्य शोभे। 
भगवति हरि वल्लभे मनोज्ञे
त्रिभुवन भूति करि प्रसीद मह्यम्।।१५।।

❑➧दिग्घस्तिभि: कनककुम्भमुखावसृष्टस्वर्वाहिनी विमलचारुजलप्लुताङ्गीम्। 
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेषलोकाधिनाथ गृहिणी ममृताब्धिपुत्रीम्।।१६।।
❍ दिग्घ स्तिभि: कनक कुम्भ मुखाव सृष्ट
स्वर् वाहिनी विमल चारु जल प्लुताङ्गीम्। 
प्रातर् नमामि जगतां जननीम शेष
लोकाधि नाथ गृहिणी ममृताब्धि पुत्रीम्।।१६।।

❑➧कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूरतरङ्गि तैरपाङ्गै:।
अवलोकय माम किञ्चनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः।।१७।।
❍ कमले कमलाक्ष वल्लभे त्वं
करुणा पूर तरङ्गि तैर पाङ्गै:।
अवलोकय माम किञ्चनानां
प्रथमं पात्रम कृत्रिमं दयायाः।।१७।।

❑➧स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्। 
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते भुवि बुधभावितशया:।।१८।।
❍ स्तुवन्ति ये स्तुति भिर मूभिरन्वहं
त्रयी मयीं त्रिभुवन मातरं रमाम्। 
गुणाधिका गुरुतर भाग्य भागिनो
भवन्ति ते भुवि बुध भावि ताशया:।।१८।।

।।इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं कनकधारास्तोत्रं सम्पूर्णम्।।