मांसाहार को अंग हिन्दू के लिये

मांसाहार को अंग हिन्दू के लिये

(कबीर के दोहे)

मांस खाना न सेहत की दृष्टि से अच्छा है, न धर्म की दृष्टि से। मनुष्य केवल स्वाद के अभिभूत होकर मूँक पशुओं के प्राण हरकर उनका मांस पकाकर खाता है, फिर वह चाहे हिन्दू हो या मुस्लिम हो, वह मानव के रूप में दानव है। यदि आपके मन तनिक भी जीवमात्र के प्रति प्रेम है तो मांसाहार न करें, मनुष्य बनें। मांसाहारी तर्क देकर भले ही इस सत्य को स्वीकार न करे कि मांस खाना पाप है, लेकिन क़ुदरत में इसकी सज़ा मिलती है।

आइये, इस पोस्ट में मांसाहार के ऊपर सन्त कबीरदास के कुछ दोहों पर ग़ौर करते हैं, जो समस्त मानव जाति को सावधान करते हैं। कबीर साहेब ने हिन्दुओं को भी फटकार लगाई है और मुस्लिमों को सचेत किया है कि मांसाहार करनेवाले मौलवियों क्या तुम्हें ख़ुदा ने इसके लिये फ़रमान भेजा है?

ख़ैर, आइये जानें कि समस्त मानव जाति और हिन्दुओं के विषय में मांसाहार को लेकर कबीरदास का क्या मन्तव्य है।

मांसाहारी मानवा, परतछ राक्षस अंग।
ताकी संगत मति करो, पड़त भजन में भंग।।१।।
मांसाहारी मनुष्य प्रत्यक्ष राक्षस देहधारी है। उसकी संगत मत करो, भजन में बाधा पड़ेगी।।१।।

मांस मछरिया खात है, सुरापान सों हेत।
ते नर जड़ से जायेंगे, ज्यों मूरी को खेत।।२।।
जो मांस-मछली खाते हैं और मदिरा पीने में प्रेम करते हैं। वे मनुष्य मूली की फसल के समान, जड़ से समाप्त हो जायेंगे।।२।।

मांस भखै मदिरा पिवै, धन बिस्वा सो खाय।
जुआ खेलि चोरी करै, अन्त समूला जाय।।३।।
जो मांस खाता, मदिरा पीता, वेश्या के साथ कमाया हुए धन का अन्न खाता है, जुआ खेलता है, चोरी करता है, वह अन्त में मूल सहित नष्ट हो जाता है।।३।।

मांस मांस सब एक है, मुरगी हिरनी गाय।
आँखि देखि नर खात है, ते नर नरकहि जाय।।४।।
मुर्गी, हिरणी, गाय सबके मांस एक समान घृणित है। जो अपनी आँखो से हिंसा देखते हुए मांस खाते हैं, वे अवश्य नरक में जायेंगे।।४।।

यह कूकर को भक्ष है, मनुष देह क्यों खाय।
मुख में आमिष मेलि है, नरक पड़े सो जाय।।५।।
यह तो कुत्ते का भोजन है, मनुष्य देह पाकर इसे क्यों खाया जाये? जो अपने मुख में मांस डालते हैं, वे अवश्य नरक में जायेंगे।।५।।

ब्राह्मन राजा बरन का, और कौम छत्तीस।
रोटी ऊपर माछरी, सबही बरन खबीस।।६।।
सब वर्णों का राजा ब्राह्मण है, इसके अतिरिक्त मनुष्य की और छत्तीसों (अनेक) जातियाँ हैं, परन्तु जहाँ रोटी के ऊपर मछली-मांस रखकर खाया जाता है, वहाँ ब्राह्मणादिक समस्त जातियाँ दुष्ट मुर्दा खोर हो जाती हैं।।६।।

तामस बेधे ब्राह्मना, मांस मछरिया खाय।
पाँय लगे सुख मानही, राम कहे जरि जाय।।७।।
तामसी ब्राह्मण मांस-मछली खाते हैं। यदि कहो पायलागी’ तो प्रसन्न हो जाते हैं और यदि जैराम कह दो तो जल-भुन उठते हैं।।७।।

पाँय पुजाये बैठि के, मुखै मांस मद होय।
तिनको दिक्षा मुक्ति नहिं, कोटि नरक फल होय।।८।।
जो (ब्राह्मण, साधु या कोई भी हो) गुरु बनकर और बैठ कर चरण पुजवाते हैं और मांस मदिरा भी खाते-पीते है। उनकी दीक्षा से मुक्ति कौन कहे, करोड़ों नरकों में दुःख भोगने का परिणाम होगा ।।८।।

सकल बरन एकत्र ह्वै, शक्तिपूजि मिलि खायँ।
हरिदासन को भ्रमित करि, केवल जमपुर जायँ।।९।।
सब जाति के लोग इकट्ठे होकर, कल्पित जगदम्बा की पूजा करके, बकरादि का वध करके खाते हैं और हरिभक्तों भ्रमित करते हैं (कि तुम लोग मूर्ख हो, जो मांस नहीं खाते) ऐसे लोग केवल यमपुरी (नीची योनि) में ही जायेंगे।।९।।

बिष्ठा का चौका किया, हाँडी सोझै हाँड़।
छूत बरावै चाम का, ताका गुरु है राँड़।।
जो विष्ठा (गोबर) का चौका लगाकर हाण्डी में हाड़-मांस पकाता है और दूसरे की देह में छूत मानकर उससे दूर हटता है, ऐसा उपदेश करनेवाले का गुरु अज्ञानी है।।१०।।

जीव हने हिंसा करे, प्रगट पाप सिर होय।
पाप सबन को देखिया, पुन्य न देखा कोय।।११।।
जो जीव को मारकर हिंसा करता है, वह प्रत्यक्ष अपने सिर पर पाप लादता है। जितने हिंसाखोर है, सब पापी हैं, कोई पुण्यात्मा नहीं।।११।।

जीव हने हिंसा करै, प्रगट पाप सिर होय।
निगम सुनी अस पाप ते, भिस्त गया नहिं कोय।।१२।।
जीव हिंसक तो प्रत्यक्ष पापी हैं। वेद सुनकर ऐसे पाप से मुक्ति पाकर कोई स्वर्ग नहीं जा सकता।।१२।।

तिल भर मछरी खाय के, कोटि गऊ दे दान।
कासी करवट लै मरे, तो भी नरक निदान।।१३।।
तिल भर भी मछली खाकर उससे उद्धार पाने के लिए करोड़ों गऊ दान करे अन्त में काशी करवट लेकर मर जाय, तो भी अन्त में नरक ही होगा।।१३।।

काटाकूटी जे करै, ते पाखण्डी भेष।
निश्चय राम न जानही, कह कबीर संदेश।।१४।।
कबीर साहेब अपना सन्देश कहते है कि जो काटाकूटी अर्थात जीव हत्या करते हैं वे पाखण्ड के वेषधारी है। निश्चय समझो, वे राम को नहीं जानते।।१४।।

पीर सबन की एक-सी, मूरख जाने नाहिं।
अपना गला कटाय के, भिस्त बसै क्यों नाहिं।।१५।।
मनुष्य पशु पक्षी-सबकी पीड़ा एक सदृश है, परन्तु अज्ञानी ऐसा नहीं जानता। यदि यज्ञ मे मारे हुए प्राणी स्वर्ग में जाते हैं, या कुर्बानी से स्वर्ग मिलता है तो ये अज्ञानी अपना गला कटा कर क्यों नहीं स्वर्ग में जा बसते हैं?।।१५।।

अजामेध गोमेध जग, अश्वमेध नरमेध।
कहै कबीर अधर्म को, धर्म बतावै वेद।।१६।।
कबीर साहेब कहते हैं कि अजामेध, गोमेध, अश्वमेध, नरमेध आदि यज्ञ जिनमें जीव-हत्या होती है, ये महान अधर्म हैं। ये अधर्म ही हमें धर्म की शिक्षा दे रहे हैं।।१६।।
(दोहे का भाव है)
कोई भी धर्मग्रन्थ हो, यदि उनमें हिंसा का आदेश है तो उसका त्याग कर देना चाहिये; क्योंकि हिंसारूपी महान अधर्म के वश में होकर धर्म को नहीं जाना सकता।