लालच की चक्की

कथा-कहानी

लालच की चक्की

एक शिष्य ने अपने गुरु से प्रार्थना की, गुरुजी, मैं रोज़ सत्संग सुनता हूँ, सेवा भी करता हूँ, फिर भी मुझे कोई फल नहीं मिला।

गुरुदेव बोले- क्या चाहते हो बेटा?

शिष्य बोला-“मैं तो बहुत ही ग़रीब हूँ गुरुवर”
गुरुदेव ने हँसकर पूछा- “बेटा तुम्हें कितने पैसों की ज़रूरत है?”

शिष्य ने अर्ज़ की- “हे गुरुदेव, बस इतना बख़्श दो कि सर पर छत हो, समाज में पत हो।”

गुरुदेव ने पूछा- “बस, इतना ही, और ज़्यादा की भूख तो नहीं?”

शिष्य हाथ जोड़कर बोला- “नहीं गुरुवर, बस इतना ही बहुत है।”

गुरुदेव ने उसे चार मोमबत्तियाँ दीं और कहा- “एक मोमबत्ती जला के पूरब दिशा में जाओ, जहाँ ये बुझ जाये, वहाँ खुदाई करके खूब सारा धन निकाल लेना। अगर कोई इच्छा बाक़ी हो तो दूसरी मोमबत्ती जलाकर पश्चिम में जाना। और चाहिए तो तीसरी मोमबत्ती जलाकर उत्तर दिशा में जाना। लेकिन सावधान! दक्षिण दिशा में कभी मत जाना, वर्ना बहुत भारी मुसीबत में फँस जाओगे।”

शिष्य बहुत ख़ुश हुआ।

पहली मोमबत्ती जलाकर चल पड़ा। जहाँ मोमबत्ती बुझ गयी, वहाँ खोदा तो सोने का भरा हुआ घड़ा मिला।

बहुत ख़ुश हुआ और अपने गुरुवर का शुक्रिया अदा करने लगा।

थोड़ी देर बाद सोचने लगा। थोड़ा और धन माल मिल जाये, फिर आराम से घर जाकर ऐश करूँगा। दूसरी मोमबत्ती जलाकर पश्चिम की ओर चल पड़ा, वहाँ उसे हीरे-मोती मिल गये।

ख़ुशी और बढ़ गयी, लेकिन मन की भूख भी बढ़ गयी। तीसरी मोमबत्ती जलाई और उत्तर दिशा में चला, वहाँ से भी बेशुमार धन मिला।

सोचने लगा कि चौथी मोमबत्ती जलाकर दक्षिण दिशा में जाने के लिये गुरुदेव ने मना किया था।शायद वहाँ से भी कोई अनमोल चीज़ मिलेगी।

चौथी मोमबत्ती जलाई और चल दिया दक्षिण दिशा की ओर। जैसे ही मोमबत्ती बुझी, वो जल्दी से खुदाई करने लगा।

खुदाई की तो एक दरवाज़ा दिखाई दिया, दरवाज़ा खोलकर अन्दर गया। अन्दर इक और दरवाज़ा दिखाई दिया, उसे खोल के अन्दर चला गया।

अँधेरे कमरे में उसने देखा, एक आदमी चक्की चला रहा है।

शिष्य ने पूछा- “भाई तुम कौन हो?”
चक्की चलानेवाला बहुत ख़ुश होकर बोला- “ओह ! आप आ गये? आओ अपनी चक्की सँभालो।”
यह कहकर उसने चक्की उसे सौंप दी,
शिष्य कुछ समझ नहीं पाया, चक्की चलाने लगा।

वो आदमी जाने लगा।
शिष्य ने पूछा- “भाई तुम कहाँ जा रहे हो? तुमने बताया नहीं, तुम कौन हो?”

आदमी ने कहा – “मैंने भी तुम्हारी तरह अपने गुरु की आज्ञा नहीं मानी थी और लालच के मारे यहाँ फँस गया। बहुत रोया, गिड़गिड़ाया, तब मेरे सतगुरु ने मुझे दर्शन दिया और कहा था, बेटा जब कोई तुमसे भी बड़ा लालची यहाँ आयेगा, तभी तुम्हारी जान छूटेगी। आज तुमने भी अपने गुरु-आज्ञा की अवहेलना की है, अब भुगतो।”

शिष्य अपने कृत्य पर बहुत शर्मसार हुआ। भविष्य की ताक में रोते रोते चक्की चलाने लगा कि जब कोई उससे भी बड़ा लालची, पैसे का भूखा आयेगा, तभी उसकी मुक्ति होगी।

उपजे मन में लोभ जो, अन्त न पावे कोय।
लालच की चाकि ऐसी, पिसत-पिसत सब खोय।।
अर्थ:- मन में जब भी लालच का जन्म होता है, उसका अन्त कोई नहीं पा पाता। लालच की चक्की ही ऐसी है, जिसमें इन्सान ख़ुद पिसते-पिसते सब कुछ खो देता है।