Category: भगवद्गीता
श्रेयान् स्वधर्मो विगुण: श्रेयान् स्वधर्मो विगुण: परधर्मात् स्वनुष्ठितात्। स्वधर्मे निधनं श्रेय: परधर्मो भयावह:॥ यह भगवद्गीता के तीसरे अध्याय का ३५वाँ श्लोक है। वर्तमान समय में पढ़ा-लिखा सभ्य, लेकिन संस्कार …
सर्वधर्मान्परित्यज्य… सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच:॥६६॥ यह श्रीमद्गवद्गीता के अठारहवें अध्याय का ६६ वाँ श्लोक है। जो गीता का सबसे गुह्य श्लोक माना जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने करुणा करके अर्जुन से …
यदा यदा हि धर्मस्य… यह श्लोक हमने कई बार सुना होगा। इसका अर्थ क्या है? आज हम जानेंगे। यह श्रीमद्भवद्गीता के चौथे अध्याय का सातवाँ और आठवाँ श्लोक है। …
गीता माहात्म्य श्रीमद्भगवद्गीता के इस माहात्म्य का उल्लेख श्रीवाराहपुराण के अन्तर्गत है। धरतीमाता के पूछने पर भगवान् श्रीहरि ने गीता के यह माहात्म्य कहा है, जिसे श्रीसूतजी बता रहे …
श्रीमद्भगवद्गीता हिन्दू धर्म का पवित्र का ग्रन्थ माना जाता है। लेकिन यह ग्रन्थ सम्पूर्ण मानवजाति के लिये है; क्योंकि इसमें स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन को निमित्त बनाकर मानवमात्र …