CHANAKYA SUTRA 6 TO 10

CHANAKYA SUTRA 6 TO 10

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CHANAKYA SUTRA 1 TO 5

चाणक्य सूत्र

।।राज्यपाल इन्द्रिय जयः।।६।।
राज्य का मूल इन्द्रियों को अपने वश में रखना है।
प्रत्येक राष्ट्र जो उन्नति करता है, वहाँ के सर्वोच्च पदाधिकारियों का कर्त्तव्य है कि वे अपनी इन्द्रियों को वश में रखें। उनके संयम के कारण ही राज्य की समृद्धि स्थिर रह सकती है। यदि वहाँ के अधिकारी अथवा सर्वोच्च नेता किसी प्रकार का संयम नहीं रख सकेंगे तो जनता भी उनका अनुसरण करती हुई वैसा ही आचरण करेगी।

इन्द्रियों पर संयम रखने का अर्थ बहुत ही व्यापक है। अधिकारी सत्ता के नशे में निरंकुश होकर कार्य करने लगेंगे तो राज्य में विद्रोह पैदा हो जायेगा, इससे राज्य की हानि होगी। आज भी हमारे सामने अनेक देशों के उदाहरण हैं, जहाँ के शासकों ने अपनी निरंकुशता के कारण राष्ट्रों को हानि पहुँचायी है। अनेक देशों में वहाँ के सर्वोच्च सत्ता पुरुष ने जनता पर इतने अत्याचार किए और स्वयं तथा अपने सगे-सम्बन्धियों को राज्य में मनमाना कार्य करने की आज़ादी दी, जिससे राष्ट्र को क्षति उठानी पड़ी। बहुत-से राजनेता भोग विलास के कारण जनाक्रोश का निशाना बने। बहुत से भ्रष्टाचार एवं स्वार्थपरायण होने के कारण अपमानित हुए।

इन्द्रियों पर विजय का अर्थ यही है कि व्यक्ति अपनी इच्छाओं को सीमित रखे। इसे आत्म-नियंत्रण भी कह सकते हैं। ‘यथा राजा तथा प्रजा’ वाली बात है। राजपुरुष असंयमी, भ्रष्टाचारी व अकर्मण्य होंगे तो भला प्रजा इन दुराचरणों से अछूती कहाँ रह सकती है?

।।इन्द्रियजयस्य मूलं विनयः।।७।।
इन्द्रियों को जीतने का सबसे मुख्य कारण नम्रता है।
मनुष्य विनयशील रहकर ही इन्द्रियों को जीत सकता है। विनयशील रहने के लिए मनुष्य को सज्जन लोगों की संगति में रहना चाहिए। वास्तव में गुणी मनुष्य ही विनयशील होते हैं। जिस प्रकार फलों से लदी हुई वृक्ष की शाखाएँ नीचे की ओर झुक जाती हैं उसी प्रकार गुणवान व्यक्ति नम्र स्वभाव का होता है। विनयशील व्यक्ति ही शिष्टाचार का प्रतीक हो सकता है।।७।।

।।विनयस्य मूलं वृद्धोपसेवा।।८।।
ज्ञान-वृद्धों की सेवा विनय का मूल है।
यहाँ वृद्ध का अर्थ आयु में बड़ा होना नहीं है, परंतु ज्ञान की अधिकता से है। जो लोग विद्वान् हैं, जिन्हें संसार के महत्त्वपूर्ण विषयों का ज्ञान है, उन लोगों को ज्ञान-वृद्ध कहा जाता है। यह आवश्यक नहीं कि ज्ञान-वृद्ध व्यक्ति की आयु बहुत अधिक हो। बहुत-से लोग छोटी आयु में ही अपने प्रयत्न से अनेक विषयों और विद्याओं का ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं। जो लोग ऐसे व्यक्तियों की सेवा में रहते हैं, वे ही विनयशील हो सकते हैं। विनयशील व्यक्ति विद्वानों, अपने माता-पिता आदि सभी का मान-सम्मान करता है। विद्वानों के पास जो ज्ञानरूपी धन है, उसे प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को नम्र होकर कुशलतापूर्वक उसे प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए। राज अथवा राज्य के अधिकारियों को भी विद्वान् लोगों के प्रति विनयशील रहते हुए उनकी सेवा करते हुए, उनसे ज्ञान प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए।

।।वृद्धसेवया विज्ञानम्।।९।।
मनुष्य वृद्धों की सेवा से ही व्यवहारकुशल होता है और उसे अपने कर्त्तव्य की पहचान होती है।
वृद्धों की सेवा से व्यक्ति को इस बात का पता चलता है कि कौन-सा कार्य करने योग्य है और कौन-सा न करने के योग्य। इसका भाव यह है कि वृद्ध व्यक्ति ने अपने जीवनकाल में बहुत कुछ सीखा है, उसने बहुत-से विषय में अनुभव प्राप्त किया होता है। यदि कोई व्यक्ति सांसारिक कार्य-व्यवहार में कुशलता प्राप्त करना चाहता है तो उसे बूढ़े व्यक्तियों की सेवा करनी चाहिए। उनके अनुभवों से लाभ उठाना चाहिए। जो मनुष्य ज्ञान-वृद्ध लोगों के पास निरन्तर उठता-बैठता है और उनमें श्रद्धा रखता है, वह ऐसे गुण सीख लेता है कि उसे समाज में अपने आचार-व्यवहार से सम्मान प्राप्त होता है। वह धोखेबाज और पाखण्डी लोगों के चक्रव्यूह में नहीं फँसता।

इस सूत्र में जो ‘विज्ञानम्’ शब्द आया है, जिसका अर्थ केवल व्यवहारकुशल होना ही नहीं वरन् संसार की अनेक ऐसी बातें हैं जिनका ज्ञान वृद्ध लोगों के पास आने-जाने, उनके उपदेशों और उनकी संगति करने से प्राप्त होता है। वे अपने अनुभव से उनका जीवन सरल बनाने में सहायक होते हैं। इस प्रकार विज्ञान का अर्थ एक व्यापक जानकारी से है। जिसकी प्राप्ति केवल पुस्तकों से ही सम्भव नहीं; क्योंकि किताब पढ़ने, समझने और ज्ञान प्राप्त करने में बहुत समय लगता है। वृद्ध पुरुषों के पास जीवन का निचोड़ होता है, इसलिए वृद्धों की सेवा श्रद्धा और भक्तिपूर्वक करने से मनुष्य संसार के अनेक महत्त्वपूर्ण ज्ञान सरलतापूर्वक ग्रहण कर सकता है।

।।विज्ञानेनात्मानं सम्पादयेत्।।१०।।
राज्याभिलाषी लोग विज्ञान, व्यवहार-कुशलता या कर्त्तव्य का परिचय प्राप्त करके अपने आपको योग्य शासक बनायें।

मनुष्य को चाहिए कि वह अपने आपको उन्नति के मार्ग में ले जाने के लिए ज्ञान-विज्ञान से सम्बन्ध बनाये और उसकी प्राप्ति का यत्न करे।

चाणक्य सूत्र की व्याख्या करनेवाले अनेक व्यक्तियों ने इस सूत्र का अर्थ योग्य शासक बनाने की दिशा में किया है, परन्तु यह सूत्र केवल शासकों के लिए ही नहीं, जनसामान्य के लिए भी है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति ज्ञान-विज्ञान प्राप्त करने के बाद ही अपने को योग्य बना सकता है। यहाँ ज्ञान-विज्ञान का अर्थ व्यवहार-कुशलता से है, जो सभी के लिए है। किसी भी क्षेत्र में सर्वोच्च शिखर तक पहुँचने के लिए व्यक्ति को व्यवहार-कुशल होना चाहिए।