RAM RAKSHA STOTRAM

हिन्दी अर्थ

❑अर्थ➠ श्री रघुनाथ का चरित्र सौ करोड़ विस्तारवाला है और उसका एक-एक अक्षर भी मनुष्य के महान पापों को नष्ट करनेवाला है।।१।।

❑अर्थ➠जो नीलकमल के समान श्यामवर्ण, कमल नयन जटाओं के मुकुट से सुशोभित, हाथों में खड्ग, तूणीर, धनुष और बाण धारण करनेवाले, राक्षसों के संहारकारी तथा संसार की रक्षाके लिये अपनी लीला से ही अवतीर्ण हुए हैं, उन अजन्मा और सर्वव्यापक भगवान् राम की जानकी और लक्ष्मण के सहित स्मरण कर प्राज्ञ पुरुष इस सर्वकामप्रदा और पाप विनाशिनी रामरक्षा का पाठ करें। मेरे सिर की राघव और ललाट की दशरथात्मज रक्षा करें।।२-४।।

❑अर्थ➠ कौसल्यानन्दन पुत्रों की रक्षा करें, विश्वामित्र प्रिय कानों को सुरक्षित रखें तथा यज्ञरक्षक घ्राण की और सौमित्रिवत्सल मुख की रक्षा करें।।५।।

❑अर्थ➠ मेरी जिह्वा विद्यानिधि, कण्ठ की भरतवन्दित, कन्धों की दिव्यायुध (दिव्य अस्त्र-शस्त्र धारण करनेवाले) और भुजाओं की भग्नेश कार्मुक (महादेव जी का धनुष तोड़नेवाले) रक्षा करें।।६।।

❑अर्थ➠ हाथों की सीतापति, हृदय की जामदग्न्यजित् (परशुरामजी को जीतनेवाले), मध्यभाग की खरध्वंसी (खर नाम के राक्षस का नाश करनेवाले) और नाभि की जाम्बवती आश्रय (जाम्बवान के आश्रय स्वरूप) रक्षा करें।।७।।

❑अर्थ➠ कमरकी सुग्रीवेश (सुग्रीव के स्वामी), सक्थियों की हनुमत्प्रभु और ऊरुओं की राक्षसकुल-विनाशक रघुश्रेष्ठ रक्षा करें।।८।।

❑अर्थ➠ जानुओं की सेतुकृत्, जंघाओं की दशमुखान्तक (रावणको मारनेवाले), चरणों को विभीषण श्रीद (विभीषण को ऐश्वर्य प्रदान करनेवाले) और सम्पूर्ण शरीर की श्रीराम रक्षा करें।।९।।

❑अर्थ➠ जो पुण्यवान् पुरुष रामबल से सम्पन्न इस रक्षाका पाठ करता है, वह दीर्घायु, सुखी, पुत्रवान्, विजयी और विनयसम्पन्न हो जाता है।।१०।।

❑अर्थ➠ जो जीव पाताल, पृथ्वी अथवा आकाश में विचरते हैं और जो द्वेष से घूमते रहते हैं, वे राम नाम से सुरक्षित पुरुष को देख भी नहीं सकते।।११।।

❑अर्थ➠ ‘राम’, ‘रामभद्र’, ‘रामचन्द्र’-इन नामों का स्मरण करनेसे मनुष्य पापों से लिप्त नहीं होता तथा भोग और मोक्ष प्राप्त कर लेता है।।१२।।

❑अर्थ➠ जो पुरुष जगत् को विजय करनेवाले एकमात्र मन्त्र राम नाम से सुरक्षित इस स्तोत्र को कण्ठ में धारण करता है (अर्थात् इसे कण्ठस्थ कर लेता है), सम्पूर्ण सिद्धियाँ उसके हस्तगत हो जाती हैं।।१३।।

❑अर्थ➠ जो मनुष्य वज्रपंजर नामक इस रामकवच का स्मरण करता है, उसकी आज्ञा का कहीं उल्लंघन नहीं होता और उसे सर्वत्र जय और मंगल की प्राप्ति होती है।।१४।।

❑अर्थ➠ श्रीशंकर ने रात्रि के समय स्वप्न में इस रामरक्षा का जिस प्रकार आदेश दिया था, उसी प्रकार प्रात:काल जागने पर बुधकौशिक इसे लिख दिया।।१५।।

❑अर्थ➠ जो मानो कल्पवृक्षों के बगीचे हैं तथा समस्त आपत्तियों का अन्त करनेवाले हैं, जो तीनों लोकों में परम सुन्दर हैं, वे श्रीमान् राम हमारे प्रभु हैं।।१६।।

❑अर्थ➠ रूपवान्, तरुण अवस्थावाले, कमल के समान विशाल नेत्रोंवाले, चीर वस्त्र और कृष्णमृगचर्मधारी, फल-मूल आहार करनेवाले, संयमी, तपस्वी, ब्रह्मचारी, सम्पूर्ण जीवों को शरण देनेवाले, समस्त धनुर्धारियों में श्रेष्ठ और राक्षस कुल का नाश करनेवाले हैं, वे रघुश्रेष्ठ दशरथ कुमार राम और लक्ष्मण दोनों भाई हमारी रक्षा करें।।१७-१९।।

❑अर्थ➠ जिन्होंने संधान किया हुआ धनुष ले रखा है, जो बाण का स्पर्श कर रहे हैं तथा अक्षय बाणों से युक्त तूणीर लिये हुए हैं, वे राम और लक्ष्मण मेरी रक्षा करने के लिये मार्ग में सदा ही मेरे आगे चलो।।२०।।

❑अर्थ➠ सर्वदा उद्यत, कवचधारी, हाथ में खड्ग लिये, धनुष-बाण धारण किये तथा युवा अवस्थावाले भगवान् राम लक्ष्मणजी सहित आगे-आगे चलकर हमारे मनोरथों की रक्षा करें।।२१।।

❑अर्थ➠ (भगवान् का कथन है कि) राम, दाशरथि, शूर, लक्ष्मणानुचर, बली, काकुत्स्थ, पुरुष, पूर्ण, कौसल्येय, रघुत्तम, वेदान्तवेद्य, यज्ञेश, पुराण पुरुषोत्तम, जानकीवल्लभ, श्रीमान् और अप्रमेयपराक्रम ─ इन नाम का नित्यप्रति श्रद्धापूर्वक जप करने से मेरा भक्त अश्वमेध यज्ञ से भी अधिक फल प्राप्त करता है ─ इसमें कोई सन्देह नहीं है।।२२-२४।।

❑अर्थ➠ जो लोग दूर्वादल के समान श्याम वर्ण कमल नयन पीताम्बरधारी भगवान राम इन दिव्य नामोंसे स्तवन करते हैं, वे संसारचक्र में नहीं पड़ते।।२५।।

❑अर्थ➠ लक्ष्मण के पूर्वज, रघुकुल में श्रेष्ठ, सीता के स्वामी, अतिसुन्दर, ककुत्स्थ कुलनन्दन, करुणा सागर, गुणनिधान, ब्राह्मण भक्त, परम धार्मिक, राजराजेश्वर, सत्यनिष्ठ, दशरथ पुत्र, श्याम और शान्त मूर्ति, सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर, रघुकुलतिलक, राघव और रावणारि भगवान राम की मैं वन्दना करता हूँ।।२६।।

❑अर्थ➠ राम, रामभद्र, रामचन्द्र, विधाता स्वरूप, रघुनाथ, प्रभु सीतापतिको नमस्कार है।।२७।।

❑अर्थ➠ हे रघुनन्दन श्री राम! हे भरताग्रज भगवान् राम! हे रणधीर प्रभु राम! आप मेरे आश्रय होइये।।२८।।

❑अर्थ➠ मैं श्री रामचन्द्र के चरणों को मन से स्मरण करता हूँ, श्रीरामचन्द्र चरणोंका वाणी से कीर्तन करता हूँ, श्रीरामचन्द्र के चरणों को सिर झुकाकर प्रणाम करता हूँ तथा श्री रामचन्द्र के चरणों की शरण लेता हूँ।।२९।।

❑अर्थ➠ राम मेरी माता हैं, राम मेरे पिता हैं, राम स्वामी हैं और राम ही मेरे सखा हैं। दयामय रामचन्द्र ही मेरे सर्वस्व हैं, उनके सिवा और किसी को मैं नहीं जानता, बिलकुल नहीं जानता।।३०।।

❑अर्थ➠ जिनकी दायीं ओर लक्ष्मण जी, बायीं ओर जानकीजी और सामने हनुमान जी विराजमान हैं, उन रघुनाथजी की मैं वन्दना करता हूँ।।३१।।

❑अर्थ➠ जो सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर, रणक्रीडामें धीर, कमलनयन, रघुवंशनायक, करुणामूर्ति और करुणाके भण्डार हैं, उन श्री रामचन्द्रजी की मैं शरण लेता हूँ।।३२।।

❑अर्थ➠ जिनकी मन के समान गति और वायु के समान वेग है, जो परम जितेन्द्रिय और बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं, उन पवननन्दन वानराग्रगण्य श्रीरामदूत की मैं शरण लेता हूँ।।३३।।

❑अर्थ➠ कवितामयी डाली पर बैठकर मधुर अक्षरोंवाले राम-राम इस मधुर नाम को कूजते हुए वाल्मीकि रूप कोकिला की मैं वन्दना करता हूँ।।३४।।

❑अर्थ➠ आपत्तियों को हरनेवाले तथा सब प्रकार की सम्पत्ति प्रदान करनेवाले लोकाभिराम भगवान् राम को मैं बारम्बार नमस्कार करता हूँ।।३५।।

❑अर्थ➠ ‘राम-राम’ ऐसा घोष करना सम्पूर्ण संसार बीजों को भून डालनेवाला, समस्त सुख-सम्पत्ति की प्राप्ति करानेवाला तथा यमदूत को भयभीत करनेवाला है।।३६।।

❑अर्थ➠ राजाओं में श्रेष्ठ श्रीराम सदा विजय को प्राप्त होते हैं। मैं लक्ष्मीपति भगवान राम का भजन करता हूँ। जिन रामचन्द्र जी ने सम्पूर्ण राक्षससेना का ध्वंस कर दिया था, मैं उनको प्रणाम करता हूँ। राम से बड़ा और कोई आश्रय नहीं है। मैं उन रामचन्द्र जी का दास हूँ। मेरा चित्त सदा राम में ही लीन रहे; हे राम! आप मेरा उद्धार कीजिये।।३७।।

❑अर्थ➠ (श्री महादेव जी पार्वती से कहते हैं ─) हे सुमुखी राम नाम विष्णु सहस्रनाम के तुल्य है। मैं सर्वदा ‘राम, राम, राम’ इस प्रकार मनोरम राम में ही रमण करता हूँ।।३८।।

इस प्रकार बुधकौशिक मुनि विरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्ण हुआ।