VISHWANATH STUTI

Vishwanath Stuti

श्रीविश्वनाथ स्तवः योगीशमिश्र द्वारा रचित है। इसकी रचना भुजंगप्रयात छन्द पर आधारित है। इसका भाव बड़ा ही सुन्दर और भक्तिपूर्ण है। जिस प्रकार रुद्राष्टकम् का पाठ करते हैं, उसी प्रकार इसका पठन किया जा सकता है।

श्री विश्वनाथ स्तवः

❑➧भवानीकलत्रं हरं शूलपाणिं शरण्यं शिवं सर्पहारं गिरीशम्।
अज्ञानान्तकं भक्तविज्ञानदं तं भजेऽहं मनोऽभीष्टदं विश्वनाथम्।।१।।
❍ भवानी कलत्रं हरं शूल पाणिं
शरण्यं शिवं सर्प हारं गिरीशम्।
अज्ञानान्तकं भक्त विज्ञानदं तं
भजेऽहं मनोऽभीष्टदं विश्व नाथम्।।

❑➧अजं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रं गुणज्ञं दयाज्ञानसिन्धुं प्रभुं प्राणनाथम्।
विभुं भावगम्यं भवं नीलकण्ठं भजेऽहं मनोऽभीष्टदं विश्वनाथम्।।२।।
❍ अजं पञ्च वक्त्रं त्रिनेत्रं गुणज्ञं
दया ज्ञान सिन्धुं प्रभुं प्राण नाथम्।
विभुं भाव गम्यं भवं नील कण्ठं
भजेऽहं मनोऽभीष्टदं विश्व नाथम्।।२।।

❑➧चिताभस्मभूषार्चिताभासुराङ्गं श्मशानालयं त्र्यम्बकं मुण्डमालम्।
कराभ्यां दधानं त्रिशूलं कपालं भजेऽहं मनोऽभीष्टदं विश्वनाथम्।।३।।
❍ चिता भस्म भूषार् चिता भासुराङ्गं
श्मशानालयं त्र्यम्बकं मुण्ड मालम्।
कराभ्यां दधानं त्रिशूलं कपालं
भजेऽहं मनोऽभीष्टदं विश्व नाथम्।।३।।

❑➧अघघ्नं महाभैरवं भीमदंष्ट्रं निरीहं तुषाराचलाभाङ्गगौरम्।
गजारिं गिरौ संस्थितं चन्द्रचूडं भजेऽहं मनोऽभीष्टदं विश्वनाथम्।।४।।
❍ अघघ्नं महा भैरवं भीम दंष्ट्रं
निरीहं तुषारा चला भाङ्ग गौरम्।
गजारिं गिरौ संस्थितं चन्द्रचूडं
भजेऽहं मनोऽभीष्टदं विश्व नाथम्।।४।।

❑➧विधुं भालदेशे विभातं दधानं भुजङ्गेशसेव्यं पुरारिं महेशम्।
शिवासंगृहीतार्द्धदेहं प्रसन्नं भजेऽहं मनोऽभीष्टदं विश्वनाथम्।।५।।
❍ विधुं भाल देशे विभातं दधानं
भुजङ्गेश सेव्यं पुरारिं महेशम्।
शिवा संगृहीतार्द्ध देहं प्रसन्नं
भजेऽहं मनोऽभीष्टदं विश्व नाथम्।।५।।

❑➧भवानीपतिं श्रीजगन्नाथनाथं गणेशं गृहीतं बलीवर्दयानम्।
सदा विघ्नविच्छेदहेतुं कृपालं भजेऽहं मनोऽभीष्टदं विश्वनाथम्।।६।।
❍ भवानी पतिं श्री जगन्नाथ नाथं
गणेशं गृहीतं बली वर्द यानम्।
सदा विघ्न विच्छेद हेतुं कृपालं
भजेऽहं मनोऽभीष्टदं विश्व नाथम्।।६।।

❑➧अगम्यं नटं योगिभिर्दण्डपाणिं प्रसन्नाननं व्योमकेशं भयघ्नम्।
स्तुतं ब्रह्ममायादिभिः पादकञ्जं भजेऽहं मनोऽभीष्टदं विश्वनाथम्।।७।।
❍ अगम्यं नटं योगिभिर् दण्ड पाणिं
प्रसन्नाननं व्योम केशं भयघ्नम्।
स्तुतं ब्रह्म माया दिभिः पाद कञ्जं
भजेऽहं मनोऽभीष्टदं विश्वनाथम्।।७।।

❑➧मृडं योगमुद्राकृतं ध्याननिष्ठं धृतं नागयज्ञोपवीतं त्रिपुण्ड्रम्।
ददानं पदाम्भोजनम्राय कामं भजेऽहं मनोऽभीष्टदं विश्वनाथम्।।८।।
❍ मृडं योग मुद्रा कृतं ध्यान निष्ठं
धृतं नाग यज्ञो पवीतं त्रिपुण्ड्रम्।
ददानं पदाम्भोज नम्राय कामं
भजेऽहं मनोऽभीष्टदं विश्व नाथम्।।८।।

❑➧मृडस्य स्वयं यः प्रभाते पठेन्ना हृदिस्थः शिवस्तस्य नित्यं प्रसन्नं।
चिरस्थं धनं मित्रवर्गं कलत्रं भजेऽहं मनोऽभीष्टदं विश्वनाथम्।।९।।
❍ मृडस्य स्वयं यः प्रभाते पठेन्ना
हृदिस्थः शिवस् तस्य नित्यं प्रसन्नं।
चिरस्थं धनं मित्र वर्गं कलत्रं
सुपुत्रं मनोऽभीष्टदं विश्व नाथम्।।९।।

❑➧योगीशमिश्रमुखपङ्कजनिर्गतं यो विश्वेश्वराष्टकमिदं पठति प्रभाते।
आसाद्य शङ्करपदाम्बुजयुग्मभक्तिं भुक्त्वा समृद्धिमिह याति शिवान्तिकेऽन्ते।।१०।।
❍ योगीश मिश्र मुख पङ्कज निर्गतं यो
विश्वेश्वराष्टक मिदं पठति प्रभाते।
आसाद्य शङ्कर पदाम्बुज युग्म भक्तिं
भुक्त्वा समृद्धि मिह याति शिवान्तिके ऽन्ते।।१०।।

।।इति श्रीयोगीशमिश्रविरचितं श्रीविश्वनाथ स्तवः सम्पूर्णम्।।

हिन्दी अर्थ

❑अर्थ➠भवानी जिनकी पत्नी हैं, जो पापों का हरण करनेवाले हैं, जिनके हाथ में त्रिशूल है, जो शरणागत की रक्षा करने में प्रवीण हैं, कल्याणकारी हैं, सर्प जिनका हार है, जो गिरीश (कैलासगिरि के स्वामी) हैं, जो अज्ञान को नष्ट करनेवाले तथा भक्तों को ज्ञान-विज्ञान से समृद्ध बनानेवाले हैं, ऐसे उन मनोवांछित फल प्रदान करनेवाले विश्व के स्वामी भगवान् विश्वनाथ का मैं भजन करता हूँ।।१।।

❑अर्थ➠जो अज (अजन्मा) हैं, जिनके पाँच मुख और तीन नेत्र हैं, जो गुणज्ञ हैं, दया और ज्ञान के सिन्धु हैं, सर्वसमर्थ तथा प्राणनाथ हैं, विभु (व्यापक) हैं, जिन्हें भक्ति भाव से प्राप्त किया जा सकता है, जो सृष्टि के रचयिता हैं, जिनका कण्ठ नीला है, ऐसे मनोवांछित फल प्रदान करनेवाले विश्व के स्वामी भगवान् विश्वनाथ का मैं भजन करता हूँ।।२।।

❑अर्थ➠जिनका शरीर चिता के भस्मरूपी अलंकार से अलंकृत एवं दीप्तिमान् है, जिनका निवास श्मशान है, जिनके तीन नेत्र हैं, जो मुण्डों की माला धारण किये रहते हैं। जो दो हाथों में त्रिशूल और कपाल धारण किये रहते हैं, ऐसे मनोवांछित फल प्रदान करनेवाले विश्व के स्वामी भगवान् विश्वनाथ का मैं भजन करता हूँ।।३।।

❑अर्थ➠जो पापों के विनाशक हैं, जो महाभैरव हैं, जिनके दाँत भयानक हैं, जो समस्त कामनाओं से रहित हैं, जिनका श्रीविग्रह हिम के पर्वत का-सा गौर है और जिन्होंने गजासुर का विनाश किया है, जो पर्वतपर रहते हैं, जिनके सिर पर बालों के जूट (जूड़े)-में चन्द्रमा विराजमान है, ऐसे मनोवांछित फल प्रदान करनेवाले विश्व के स्वामी भगवान् विश्वनाथ का मैं भजन करता हूँ।।४।।

❑अर्थ➠जो भालदेश में दीप्तिमान् चन्द्रमा को धारण किये हुए हैं, जिनकी सेवा सर्पराज करते रहते हैं, जो त्रिपुरारि तथा महान् ईश हैं, जिनके शरीर के आधे भाग को शिवा (माता पार्वतीजी) ने अधिगृहीत किया है, जो सदा प्रसन्न रहते हैं, ऐसे मनोवांछित फल प्रदान करनेवाले विश्वके स्वामी भगवान विश्वनाथ का मैं भजन करता हूँ।।५।।

❑अर्थ➠जो भवानीपति हैं, जो संसार के नाथों के नाथ (स्वामी) हैं, जो गणों के ईश हैं, जिन्होंने बैल को अपना वाहन चुना है, जिनकी कृपा से सदा विघ्नों का विच्छेद होता रहता है, जो कृपालु हैं, ऐसे मनोवांछित फल प्रदान करनेवाले विश्व के स्वामी भगवान् विश्वनाथ का मैं भजन करता हूँ।।६।।

❑अर्थ➠जो योगिजनों के लिये भी अगम्य हैं, जो नाट्य (नृत्य) कला में प्रवीण हैं, दण्डपाणि हैं, प्रसन्नमुख हैं तथा जिनके केश (किरण) व्योम (आकाश)-तक व्याप्त हैं, जो भय का नाश करनेवाले हैं, जिनके चरणकमलों की स्तुति ब्रह्म और माया आदि करते रहते हैं। ऐसे मनोवांछित फल प्रदान करनेवाले विश्व के स्वामी भगवान विश्वनाथ का मैं भजन करता हूँ।।७।।

❑अर्थ➠जो आनन्दमूर्ति हैं, योग मुद्रा धारण किये हुए हैं तथा ध्यान योग में निरत हैं, जिन्होंने सर्प का यज्ञोपवीत और त्रिपुण्ड धारण कर रखा है, चरणकमलों में झुके भक्त को उसका अभीष्ट प्रदान करते हैं, ऐसे मनोवांछित फल प्रदान करनेवाले विश्व के स्वामी भगवान विश्वनाथ का मैं भजन करता हूँ।।८।।

❑अर्थ➠जो मनुष्य प्रभातकाल में भगवान मृड (विश्वनाथ) के इस स्तव का पाठ करता है, उसके हृदय में स्थित होकर शिव उस पर सदैव प्रसन्न रहते हैं और उसे चिरस्थायी सम्पत्ति, मित्रवर्ग, पत्नी, सत्पुत्र, मनोवांछित वस्तु तथा मोक्ष प्रदान करते हैं।।९।।

❑अर्थ➠जो व्यक्ति योगीश मिश्र के मुखकमल से निकले इस विश्वेश्वराष्टक (विश्वनाथ स्तव) का प्रभातवेला में पाठ करता है, वह इस लोक में भगवान् शंकर चरण कमलों की भक्ति प्राप्त करके समृद्धि का भोग प्राप्त करता है और अन्त में भगवान शिव का सान्निध्य प्राप्त कर लेता है।।१०।।

इस प्रकार श्री योगीशमिश्र विरचित श्री विश्वनाथ स्तव सम्पूर्ण हुआ।

7 Comments

  1. gypesee January 25, 2023
  2. gypesee January 27, 2023
  3. gypesee January 30, 2023
  4. gypesee January 31, 2023
  5. gypesee February 3, 2023
  6. gypesee February 5, 2023
  7. Boasexy February 22, 2023

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